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कर्मणयेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।
Nov 17, 2010
Oct 6, 2010
'यह दिल्ली है मेरी जान...'
दिल्ली दिलवालों की ही नहीं बुलंद हौंसले वालों की भी है, असंभव को संभव बना देने का जुनून रखने वालों की है. कॉमनवेल्थ खेलों के जबरदस्त आगाज़ ने ये बात आज एक बार फिर साबित कर दी है, देश ही नहीं पूरी दुनिया के सामने दिल्ली सिर उठाकर खड़ी है और पूरे जोशो खरोश के साथ स्वागत कर रही है अपने हर मेहमान का.
देश की नाक का सवाल बन गए कॉमनवेल्थ गेम्स का आगाज दरअसल यह दर्शाता है कि अगर भारत चाहे तो विश्व स्तर का कोई भी आयोजन बिना किसी हिचक के कर सकता है. एक आम हिन्दुस्तानी इस बात पर गर्व कर सकता है कि करीब 7 हजार से ज्यादा खिलाड़ियों और अधिकारियों की हिस्सेदारी वाले खेल का आयोजन दिल्ली ने कुछ इस कदर किया है जिसे कॉमनवेल्थ इतिहास में लंबे समय तक याद रखा जाएगा. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि यह भारत का आर्थिक दबदबा है जिसके सामने दुनिया नतमस्तक है.
पिछले तीन महीने में हर दिल्लीवासी ने, न्यूज चैनलों और अखबारों ने कॉमनवेल्थ की तमाम खामियों को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. बावजूद इसके जिस भव्य स्तर पर इन खेलों का आयोजन हो रहा है वह अपने आप में दर्शाता है कि जब बेटी की शादी करनी होती है तो फिर क्या बाराती, क्या घर वाले सब मिलकर काम करते हैं.
चाहे हम मेट्रो की बात करें या स्टेडियमों की, खेलगांव की बात करें या फिर बुनियादी सुविधाओं की या फिर सवाल हो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा का, तमाम आलोचनाओं के बाद आज दिल्ली जिस तरह बदली बदली दिख रही है, उसे देखने के बाद हर शख्स यही कह रहा है 'यह दिल्ली है मेरी जान'.
अगर बात करें खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के दबदबे की तो हमारे खिलाड़ी का दावा है कि तकरीबन 100 मेडल के साथ वो मेडल तालिका में दूसरे स्थान पर जरूर होंगे. अगर इसमें थोड़ी ऊंच नीच भी हो और हम पहले पांच में भी अपने आप को ला खड़ा करते है तो भी इस उपलब्धि को कम नहीं आंका जाना चाहिए.
इसमें कोई दो राय नहीं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जलवा दिखाने वाले कई खिलाड़ी हमारे देश में हैं लेकिन सुविधाओं और ट्रेनिंग के अभाव में हमारे खिलाड़ी शायद उतना कुछ हासिल नहीं कर पाते जितनी उनकी क्षमता है. लेकिन आज कि इस बदलते भारत में जहां भारत और इंडिया एक दूसरे के साथ परस्पर द्वंद्व में हैं और जहां इंडिया हर मौके पर भारत से आगे दिखना चाहता है, वहां इन छोटी मोटी कमियों को नजरअंदाज करना ही चाहिए.
वरना आज से 65 साल पहले कौन यह कह सकता था कि भारतीय मध्यवर्ग जिसकी आबादी अमेरिका की आबादी से भी ज्यादा है, उसे खुश करने के लिए कई पश्चिमी देश ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. ये है भारत की ताकत और इसका छोटा नमूना है कॉमनवेल्थ गेम्स. इन गेम्स के आगाज के साथ हमें इस बात को फिलहाल भूल जाना चाहिए कि इसके आयोजन में भ्रष्टाचार की कितनी कहानियां छिपी है. हमें देखना है तो बस ये कि मेडल तालिका में हम किस नंबर पर खड़े होते हैं और 14 अक्टूबर को पूरी दुनिया कैसे मानती है कि 'इंडिया इज शाइनिंग'.
देश की नाक का सवाल बन गए कॉमनवेल्थ गेम्स का आगाज दरअसल यह दर्शाता है कि अगर भारत चाहे तो विश्व स्तर का कोई भी आयोजन बिना किसी हिचक के कर सकता है. एक आम हिन्दुस्तानी इस बात पर गर्व कर सकता है कि करीब 7 हजार से ज्यादा खिलाड़ियों और अधिकारियों की हिस्सेदारी वाले खेल का आयोजन दिल्ली ने कुछ इस कदर किया है जिसे कॉमनवेल्थ इतिहास में लंबे समय तक याद रखा जाएगा. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि यह भारत का आर्थिक दबदबा है जिसके सामने दुनिया नतमस्तक है.
पिछले तीन महीने में हर दिल्लीवासी ने, न्यूज चैनलों और अखबारों ने कॉमनवेल्थ की तमाम खामियों को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. बावजूद इसके जिस भव्य स्तर पर इन खेलों का आयोजन हो रहा है वह अपने आप में दर्शाता है कि जब बेटी की शादी करनी होती है तो फिर क्या बाराती, क्या घर वाले सब मिलकर काम करते हैं.
चाहे हम मेट्रो की बात करें या स्टेडियमों की, खेलगांव की बात करें या फिर बुनियादी सुविधाओं की या फिर सवाल हो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा का, तमाम आलोचनाओं के बाद आज दिल्ली जिस तरह बदली बदली दिख रही है, उसे देखने के बाद हर शख्स यही कह रहा है 'यह दिल्ली है मेरी जान'.
अगर बात करें खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के दबदबे की तो हमारे खिलाड़ी का दावा है कि तकरीबन 100 मेडल के साथ वो मेडल तालिका में दूसरे स्थान पर जरूर होंगे. अगर इसमें थोड़ी ऊंच नीच भी हो और हम पहले पांच में भी अपने आप को ला खड़ा करते है तो भी इस उपलब्धि को कम नहीं आंका जाना चाहिए.
इसमें कोई दो राय नहीं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जलवा दिखाने वाले कई खिलाड़ी हमारे देश में हैं लेकिन सुविधाओं और ट्रेनिंग के अभाव में हमारे खिलाड़ी शायद उतना कुछ हासिल नहीं कर पाते जितनी उनकी क्षमता है. लेकिन आज कि इस बदलते भारत में जहां भारत और इंडिया एक दूसरे के साथ परस्पर द्वंद्व में हैं और जहां इंडिया हर मौके पर भारत से आगे दिखना चाहता है, वहां इन छोटी मोटी कमियों को नजरअंदाज करना ही चाहिए.
वरना आज से 65 साल पहले कौन यह कह सकता था कि भारतीय मध्यवर्ग जिसकी आबादी अमेरिका की आबादी से भी ज्यादा है, उसे खुश करने के लिए कई पश्चिमी देश ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. ये है भारत की ताकत और इसका छोटा नमूना है कॉमनवेल्थ गेम्स. इन गेम्स के आगाज के साथ हमें इस बात को फिलहाल भूल जाना चाहिए कि इसके आयोजन में भ्रष्टाचार की कितनी कहानियां छिपी है. हमें देखना है तो बस ये कि मेडल तालिका में हम किस नंबर पर खड़े होते हैं और 14 अक्टूबर को पूरी दुनिया कैसे मानती है कि 'इंडिया इज शाइनिंग'.
Aug 13, 2010
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