Dec 21, 2018

‌खामियां बेहिसाब

कही हद से जादा तो नही मेरी गलतिया !!
मैं आसमाँ से उतरा परिंदा नहीं,
खामियां मेरे अंदर बहुत है,
गिनतियाँ करियेगा तो कम पड़ जाएगी उंगलिया,
कही हद से जादा तो नही मेरी गलतिया !!
सुना था इंसान मिट्टी का पुतला है,
पता न कब बिखर जाउ,
इसलिए सायद हो जाती होगी गुस्ताखियां,
कही हद से जादा तो नही मेरी गलतिया !!
तिनका भी नही हिल सकता बिन मर्जी तेरी,
संभालो उशे जिसकी आदत बन गई गलतिया,
मेरे रब ये सब बेबसी का सबब तो नही,
अच्छे बुरे लफ्ज बनके निकलती मेरी गलतिया,
कही हद से जादा तो नही मेरी गलतिया !!
एक नाव ऐसा जिसका कोई साहिल नही,
सूखे रेत में डगमगाना कही लाजमी तो नही,
एक राह ऐसा जिसका कोई किनारा नही,
एक जान ऐसी जिसका कोई सहारा नही,
कही हद से जादा तो नही मेरी गलतिया !!
उसकी फितरत बुरी नही ना करतूत बुरी,
कभी कभी लड़खड़ाना हो जाती है मजबूरिया,
नादान परिंदा है वो , नादान परिंदा है वो,
कमसे कम आप तो समझो मेरी कमजोरिया,
कही हद से जादा तो नही मेरी गलतिया !!

21 Dec, 2018, 6,40 am
DHIK H

May 1, 2018

आधुनिक इंसान

खुशियाँ कम और
         अरमान बहुत हैं ।
जिसे भी देखो,
         परेशान बहुत है ।।
करीब से देखा तो,
      निकला रेत का घर ।
मगर दूर से इसकी,
               शान बहुत है ।।
कहते हैं सच का,
      कोई मुकाबला नहीं ।
मगर आज झूठ की,
           पहचान बहुत है ।।
मुश्किल से मिलता है,
             शहर में आदमी ।
यूं तो कहने को,
             इन्सान बहुत हैं ।।