दिल्ली: जज़्बे, जुनून और मेहमाननवाज़ी की मिसाल
दिल्ली सिर्फ़ दिलवालों की ही नहीं, बल्कि बुलंद हौसलों और असंभव को संभव बना देने का जुनून रखने वालों की भी है। कॉमनवेल्थ खेलों के भव्य आगाज़ ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि दिल्ली सिर उठाकर खड़ी है और पूरे जोशो-खरोश के साथ अपने हर मेहमान का स्वागत कर रही है।
कॉमनवेल्थ गेम्स का शानदार आयोजन यह दर्शाता है कि भारत अगर चाहे, तो विश्वस्तर का कोई भी आयोजन बख़ूबी कर सकता है। 7 हज़ार से अधिक खिलाड़ियों और अधिकारियों की मौजूदगी वाले इस आयोजन को दिल्ली ने जिस भव्यता से किया है, वह लंबे समय तक याद रखा जाएगा। कई लोग इसे भारत की आर्थिक ताक़त का प्रतीक भी मान रहे हैं।
बीते महीनों में दिल्लीवासियों और मीडिया ने आयोजन की तमाम खामियों को उजागर किया था। लेकिन आज, जिस स्तर पर खेलों का संचालन हो रहा है, वह इस बात की मिसाल है कि जब कोई बड़ा आयोजन होता है, तो हर कोई मिलकर उसे सफल बनाता है। चाहे बात हो मेट्रो की, स्टेडियमों की, खेलगांव की या बुनियादी सुविधाओं की—दिल्ली पूरी तरह बदली-बदली नज़र आ रही है। और हर कोई कह उठा है: "ये दिल्ली है मेरी जान!"
भारतीय खिलाड़ियों की उम्मीदें
हमारे खिलाड़ियों का दावा है कि वे तकरीबन 100 मेडल जीतकर पदक तालिका में दूसरे स्थान पर होंगे। भले ही नतीजे थोड़े ऊपर-नीचे हों, लेकिन अगर भारत पहले पाँच में भी आता है तो यह उपलब्धि गर्व करने लायक होगी। हाँ, सुविधाओं और प्रशिक्षण की कमी के कारण कई खिलाड़ी अपनी पूरी क्षमता नहीं दिखा पाते, लेकिन बदलते भारत में इन छोटी कमियों को नज़रअंदाज़ करना ही समझदारी है।
भारत की नई ताक़त
65 साल पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि भारतीय मध्यवर्ग की ताक़त को पहचानने और उसे खुश करने के लिए पश्चिमी देश भी अपनी पूरी ताक़त झोंक देंगे। यही भारत की असली शक्ति है, और कॉमनवेल्थ खेल इस शक्ति की एक झलक मात्र हैं।
आज ज़रूरत है कि हम भ्रष्टाचार की कहानियों को थोड़ी देर के लिए भूलकर केवल इस बात पर ध्यान दें कि भारत खेलों में कहाँ खड़ा है। और 14 अक्टूबर को जब दुनिया देखेगी कि "India is Shining", तब हर हिंदुस्तानी का सीना गर्व से चौड़ा होगा।
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Great, Keep it UP!
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