Desire of a Flower चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूथा जाऊँ ! चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ !! चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ ! चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इतराऊँ !! मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक ! मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक !! पं. माखनलाल चतुर्वेदी
कर्मणयेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।