किसका सिंगार ? किसकी सेवा ? नर का ही जब कल्याण नहीं ? किसके विकास की कथा ? जनों के ही रक्षित जब प्राण नहीं ? इस विस्मय का क्या समाधान ? रह-रह कर यह क्या होता है ? जो है अग्रणी वही सबसे आगे बढ़ धीरज खोता है।
कर्मणयेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।