मथुरा। भादों का महीना और कृष्ण पक्ष की अष्टमी। रात बारह बजे और आकाशवाणी वाला शुभ मुहूर्त। गर्भगृह [जेल] में पहरेदारों की आंखें भारी होने लगीं।पलक बंद हो गए। कुछ ही पलों में दुनिया के तारणहार योगीराज श्रीकृष्ण बालरूप में पृथ्वी पर अवतरित हो गए। तीन लोक से न्यारी मथुरा श्रद्धा के सागर में गोते लगाने लगी। जन्मभूमि पहुंचे लाखों भक्त प्रभु जन्म के साक्षात गवाह बने। कंस के कारागार [गर्भगृह] में कृष्ण जन्म लीला एक बार फिर जीवंत हो उठी। यहां कृष्ण जन्म के साथ ही समूचा जगत हाथी-घोड़ा-पालकी, जय कन्हैया लाल की..के जयघोष उठे। बृज की ऐतिहासिक भूमि में घंटे, घड़ियाल, झांझ, मजीरे, शंख ध्वनि, मृदंग, ढोल-नगाड़ों की आवाज गूंजने लगी। इनके संग करोड़ों कंठों के जयकार स्वरों से त्रिलोक आनंदित हो गये। इनकी गूंज उठी तो दूर यमुना की लहरों से टकराई। इससे उसे भी संदेश पहुंच गया कि नन्हे स्वरूप में बांकेबिहारी कुछ ही पलों में पिता वसुदेव के साथ आने वाले हैं। बस इतने भर से ही वह इठलाने लगी। कन्हैय्या जन्म के अलौकिक दृश्य का प्रस्तुतीकरण रात्रि 11 बजे विघ्नेश्वर और नव ग्रह पूजन से शुरू हुआ। प्रकटे बाल कृष्ण का जन्...
कर्मणयेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।